अपने हाथों से बिखेर देने को
कोई रेत का घर तो नहीं बनाता
लोगों के क्यों का जवाब
टूटे दिल से भी तो दिया नहीं जाता
बेरूखी खुद से बिखर जाने पर हो
ये इज़ाज़त तो हर बार हासिल भी नहीं
जब टूटा हो दिल कई बार तो
रुसवाई के पार कुछ और देखा भी नहीं जाता
शक अपने इश्क पर होता नहीं था कभी
न दिल से गिला रहा कभी न दिलदार से मुझे
हर बार शिकायत रही तो बस कम्बख्त वक़्त से रही
कभी तेज़ रहा, कभी थम गया, बस गलत रफ्तार से चला
एक mera ही तो दिल नहीं इस सारे जहान में
फिर दर्द कहीं और जा कर ठहर क्यूँ नहीं जाता
रुसवाई से मेरी दोस्ती की दास्तान पुरानी है
ग़ालिब सेभी तो किले का जिक्र बार बार तो किया नहीं जाता
इस से पहले की लहरें घर को रेत का फिर से ढेर कर दे
अपने हाथों से तोड़ देते हैं कभीइल्म से कभी गुस्ताखी से
दीद -ए - यार की ख्वाहिश में का ये दिल कायल तो नहीं
पर दीदार पर यह कतरा भी न रोये इतना पत्थर भी हुआ नहीं जाता
शिकायत हर बार मुझे इस वक़्त से रही
जो कभी बहुत तेज़ चला तो कभी थम सा गया ।
कोई रेत का घर तो नहीं बनाता
लोगों के क्यों का जवाब
टूटे दिल से भी तो दिया नहीं जाता
बेरूखी खुद से बिखर जाने पर हो
ये इज़ाज़त तो हर बार हासिल भी नहीं
जब टूटा हो दिल कई बार तो
रुसवाई के पार कुछ और देखा भी नहीं जाता
शक अपने इश्क पर होता नहीं था कभी
न दिल से गिला रहा कभी न दिलदार से मुझे
हर बार शिकायत रही तो बस कम्बख्त वक़्त से रही
कभी तेज़ रहा, कभी थम गया, बस गलत रफ्तार से चला
एक mera ही तो दिल नहीं इस सारे जहान में
फिर दर्द कहीं और जा कर ठहर क्यूँ नहीं जाता
रुसवाई से मेरी दोस्ती की दास्तान पुरानी है
ग़ालिब सेभी तो किले का जिक्र बार बार तो किया नहीं जाता
इस से पहले की लहरें घर को रेत का फिर से ढेर कर दे
अपने हाथों से तोड़ देते हैं कभीइल्म से कभी गुस्ताखी से
दीद -ए - यार की ख्वाहिश में का ये दिल कायल तो नहीं
पर दीदार पर यह कतरा भी न रोये इतना पत्थर भी हुआ नहीं जाता
शिकायत हर बार मुझे इस वक़्त से रही
जो कभी बहुत तेज़ चला तो कभी थम सा गया ।
No comments:
Post a Comment